"बहुत ही प्यारी कविता"
ऐ "सुख" तू कहाँ मिलता है,
क्या तेरा कोई पक्का पता है??
क्यों बन बैठा है अन्जाना,
आखिर क्या है तेरा ठिकाना।
कहाँ कहाँ ढूंढा तुझको,
पर तू न कहीं मिला मुझको.
ढूंढा ऊँचे मकानों में,
बड़ी बड़ी दुकानों में.
स्वादिष्ट पकवानों में,
चोटी के धनवानों में.
वो भी तुझको ही ढूंढ रहे थे,
बल्कि मुझको ही पूछ रहे थे!
क्या आपको कुछ पता है,
ये सुख आखिर कहाँ रहता है?
मेरे पास तो "दुःख" का पता था,
जो सुबह शाम अक्सर मिलता था |
परेशान होके शिकायत लिखवाई,
पर ये कोशिश भी काम न आई.
उम्र अब "ढलान" पे है,
हौसला अब थकान पे है.
हाँ उसकी तस्वीर है मेरे पास,
अब भी बची हुई है आस.
मैं भी हार नही मानूंगा,
सुख के रहस्य को जानूंगा!
बचपनमें मिला करता था,
मेरे साथ रहा करता था!!
पर जबसे मैं बड़ा हो गया,
मेरा सुख मुझसे जुदा हो गया।
मैं फिर भी नही हुआ हताश,
जारी रखी उसकी तलाश.
एक दिन जब आवाज ये आई,
क्या मुझको ढूंढ रहा है भाई?
मैं तेरे अन्दर छुपा हुआ हूँ,
तेरे ही घरमें बसा हुआ हूँ |
मेरा नहीं है कुछ भी "मोल",
सिक्कों में मुझको न तोल!
मैं बच्चों की मुस्कानों में हूँ,
पत्नी के साथ चाय पीने में,
"परिवार" के संग जीने में
माँ बाप के आशीर्वाद में,
रसोई घर के पकवानों में.
बच्चों की सफलता में हूँ,
माँ की निश्छल ममता में हूँ!
हर पल तेरे संग रहता हूँ,
और अक्सर तुझसे कहता हूँ.
मैं तो हूँ बस एक "अहसास",
बंद कर दे तू मेरी तलाश!!
जो मिला उसी में कर "संतोष",
आज को जी ले कल की न सोच.
कल के लिए आज को न खोना,
मेरे लिए कभी दुखी न होना,
मेरे लिए कभी दुखी न होना!!
ऐ "सुख" तू कहाँ मिलता है,
क्या तेरा कोई पक्का पता है??
क्यों बन बैठा है अन्जाना,
आखिर क्या है तेरा ठिकाना।
कहाँ कहाँ ढूंढा तुझको,
पर तू न कहीं मिला मुझको.
ढूंढा ऊँचे मकानों में,
बड़ी बड़ी दुकानों में.
स्वादिष्ट पकवानों में,
चोटी के धनवानों में.
वो भी तुझको ही ढूंढ रहे थे,
बल्कि मुझको ही पूछ रहे थे!
क्या आपको कुछ पता है,
ये सुख आखिर कहाँ रहता है?
मेरे पास तो "दुःख" का पता था,
जो सुबह शाम अक्सर मिलता था |
परेशान होके शिकायत लिखवाई,
पर ये कोशिश भी काम न आई.
उम्र अब "ढलान" पे है,
हौसला अब थकान पे है.
हाँ उसकी तस्वीर है मेरे पास,
अब भी बची हुई है आस.
मैं भी हार नही मानूंगा,
सुख के रहस्य को जानूंगा!
बचपनमें मिला करता था,
मेरे साथ रहा करता था!!
पर जबसे मैं बड़ा हो गया,
मेरा सुख मुझसे जुदा हो गया।
मैं फिर भी नही हुआ हताश,
जारी रखी उसकी तलाश.
एक दिन जब आवाज ये आई,
क्या मुझको ढूंढ रहा है भाई?
मैं तेरे अन्दर छुपा हुआ हूँ,
तेरे ही घरमें बसा हुआ हूँ |
मेरा नहीं है कुछ भी "मोल",
सिक्कों में मुझको न तोल!
मैं बच्चों की मुस्कानों में हूँ,
पत्नी के साथ चाय पीने में,
"परिवार" के संग जीने में
माँ बाप के आशीर्वाद में,
रसोई घर के पकवानों में.
बच्चों की सफलता में हूँ,
माँ की निश्छल ममता में हूँ!
हर पल तेरे संग रहता हूँ,
और अक्सर तुझसे कहता हूँ.
मैं तो हूँ बस एक "अहसास",
बंद कर दे तू मेरी तलाश!!
जो मिला उसी में कर "संतोष",
आज को जी ले कल की न सोच.
कल के लिए आज को न खोना,
मेरे लिए कभी दुखी न होना,
मेरे लिए कभी दुखी न होना!!
No comments:
Post a Comment