बोध कथा (bodhakatha)
चारोळी आकाशात खुलला चंद्र आज शुभ्र चांदण्यानी केलाय साज रंग नभी तुझे शोभून दिसे त्यापुढे चांदण्याही फिक्या असे. ✍ ©श्रीमती प्रमिला सेनकुडे
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